By Samachar Vishesh News
Chandigarh 31st October:- स्तन कैंसर महिलाओं में होने वाला सबसे आम कैंसर है। ये महिलायों की मौत का सबसे बड़ा कारण बनता जा रहा है। अगर समय पर स्तन कैंसर की पहचान हो जाए तो इसका इलाज मुमकिन है। ये बातें मैक्स हॉस्पिटल से ऑन्कोलॉजिस्ट एवं हेमाटो ऑन्कोलॉजिस्ट डॉक्टर चित्रेश अग्रवाल ने वीरवार को पत्रकारों संग साँझा की।
इस मौके पर डॉक्टर चित्रेश अग्रवाल ने बताया कि यदि दर्द के साथ स्तन का आकार तेजी से बढ़े, तरल द्रव्य निकले और स्तन के अंदर या बाहर कोई गांठ महसूस हो तो महिलाएं सतर्क हो जाएं। यह स्तन कैंसर के लक्षण हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में तुरंत ही स्त्री रोग विशेषज्ञ से मिलकर जांच और इलाज कराएं।
ऑन्कोलॉजिस्ट डॉक्टर चित्रेश अग्रवाल ने बताया कि विश्व में हर साल करीब 20 लाख महिलाएं पीड़ित होती हैं। वर्ष 2018 में विश्व में स्तन कैंसर से करीब छह लाख 27 हजार महिलाओं की मौत हुई। विकसित देशों और इलाकों में रहने वाली महिलाओं में स्तन कैंसर की अधिक समस्या होती है। स्तन कैंसर की समय पर पहचान हो जाए तो इलाज मुमकिन है।
भारत में स्तन कैंसर पीड़ित एक तिहाई महिलाओं की असमय मृत्यु हो जाती है। कारण एक ही है, बीमारी का देरी से पता चलना, क्योंकि कैंसर के स्टेज 4 तक पहुंचते-पहुंचते मरीज के बचने की संभावना महज 22% रह जाती है, देश में स्तन कैंसर की मृत्यु दर को कम करने का तरीका है इसके नियमित परीक्षण के बारे में जागरुकता फैलाना। यही कारण है कि अक्टूबर को दुनियाभर में स्तन कैंसर जागरुकता माह के रूप में मनाया जा रहा है।
डॉक्टर चित्रेश अग्रवाल ने बताया कि स्तन कैंसर के शुरुआती चरण कौन-से हैं:--स्टेज 0, जिसे कार्सिनोमा इन-सीटू (सीआईएस) के रूप में भी जाना जाता है, एक प्री-कैंसर स्टेज है जब "एटिपिकल" सेल्स स्तनों में लोब्यूल या दूध नलिकाओं को प्रभावित करना शुरू करती हैं। लोब्यूल वह जगह है जहां स्तन में दूध बनता है, और नलिकाएं उन्हें निपल्स तक ले जाती हैं। चरण 1 में, कैंसर 2 सेमी से छोटा होता है, लेकिन फैला हुआ नहीं होता है। अथवा ट्यूमर छोटे होते हैं, लेकिन दो या तीन लिम्फ नोड्स में फैल चुके होते हैं। संक्षेप में, कैंसर जन्म ले चुका होता है। रेडिएशन या सर्जरी, या दोनों से इसका इलाज है। इस स्तर पर, डॉक्टर आमतौर पर कीमोथैरेपी की जरूरत नहीं समझते हैं।
परेशानी यह है कि इस स्टेज पर कैंसर का पता लगाना मुश्किल है, जब तक कि मरीज खुद अपनी जांच न करे या नियमित रूप से डॉक्टर के पास जाकर जांच न करवाए। निश्चित रूप से भारत में इसके बचाव की दवाओं का चलन बढ़ा है, इसलिए भारतीय महिलाओं के लिए उम्मीद बढ़ी है और सही जानकारी होने से इस कैंसर का समय रहते पता लगाया जा सकता है।
स्वयं की जांच केवल तभी संभव है जब मरीज अपने शरीर को अच्छी तरह से जानते हो। विचार यह है कि प्रत्येक कर्व, बम्प और मॉल से परिचित हो ताकि अगर कुछ बदलाव होता है, तो तुरंत जान सकें। इस परीक्षण के अलग-अलग तरीके हैं और इनमें महज 5 मिनट का समय लगता है। डॉक्टर चित्रेश अग्रवाल ने बताया कि नए डिम्पल, पिम्पल, कहीं कुछ उठा हुआ या धंसा हुआ हिस्सा, आकार या समरूपता में कोई परिवर्तन जैसी चीजों को देखें। अपनी बाहों को ऊपर उठाएं, और फिर से देखें। स्तन में किसी भी तरह की गांठ को महसूस करने के लिए हथेली या इसके पीछे वाले हिस्से का उपयोग करें। अंडरआर्म्स से शुरुआत करते हुए अंदर की ओर जांचें। गांठ की जांच के लिए उन्हें थोड़ा दबाव डाल कर देखें। ऐसा करते समय कुछ डॉक्टर्स लेटने की सलाह देते हैं, क्योंकि लेटने से ब्रेस्ट टिश्यू फैल जाते हैं। यदि कोई गांठ महसूस होती है, या निपल्स कुछ अलग दिखते हैं, या स्तन सामान्य की तुलना में अलग या भरे हुए लगते हैं, तो डॉक्टर से मिलें। मासिक धर्म के दौरान कुछ बदलाव सामान्य होते हैं, लेकिन समय के साथ अंतर बताना सीख जाएंगे।
स्तन कैंसर की जांच के लिए मैमोग्राम, स्तन अल्ट्रासाउंड और एमआरआई (मैग्नेटिक रेसोनेंस इमेजिंग) का विश्व स्तर पर उपयोग किया जाता है। डॉक्टर सलाह देते हैं कि 45 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं को हर दो साल में जांच करवाना चाहिए। जिन परिवारों में स्तन कैंसर का इतिहास है, वहां महिलाओं को ये जांच जल्द करवाना चाहिए।
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